बुद्धि के सिद्धांत (Principals Of Intelligence)


बुद्धि के सिद्धांत (Principals Of Intelligence)

बुद्धि के सिद्धांत
सिद्धांत
प्रतिपादन
एक-कारक सिद्धांत
द्वि-कारक सिद्धांत
बहुकारक सिद्धांत
प्रतिदर्श सिद्धांत
समूह कारक सिद्धांत
पदानुक्रमिक सिद्धांत (त्रि-आयामी)
तरल ठोस बुद्धि सिद्धांत
बहुबुद्धि सिद्धांत
बिने, टर्मन, स्टर्न
स्पीयरमैन 
थॉर्नडाइक
थॉमसन
थर्सटन
 जे.पी.गिलफोर्ड

 आर.बी. कैटेल

हॉवर्ड गार्डनर

कुछ मनोवैज्ञानिकों ने बुद्धि के स्वरुप से सम्बन्धित विभिन्न सिद्धांतों का प्रतिपादन किया हैं, जिनसे बुद्धि के सम्बन्ध में कई प्रकार की महत्वपूर्ण जानकारियाँ मिलती हैं, जो निम्न प्रकार हैं –

एक-कारक सिद्धांत –

एक-कारक सिद्धांत का प्रतिपादन बिने ने किया और इस सिद्धांत का समर्थन कर इसको आगे बढ़ाने का श्रेय टर्मन, स्टर्न जैसे मनोवैज्ञानिकों को हैं.
v  इन मनोवैज्ञानिकों का मत है की बुद्धि एक अविभाज्य इकाई हैं.

v  स्पष्ट है की इस सिद्धांत के अनुसार बुद्धि को एक शक्ति या कारक के रूप में माना गया हैं.

v  इन मनोवैज्ञानिकों के अनुसार, बुद्धि वह मानसिक शक्ति हैं, जो व्यक्ति के समस्त कार्यों का संचालन करती है तथा व्यक्ति के समस्त व्यवहारों को प्रभावित करती हैं.

द्वि-कारक सिद्धांत –

इस सिद्धांत के प्रतिपादक ‘स्पीयरमैन’ हैं. उनके अनुसार बुद्धि में दो कारक हैं अथवा सभी प्रकार के मानसिक कार्यों में दो प्रकार की मानसिक योग्यताओं की आवश्यकता होती है. प्रथम सामान्य मानसिक योग्यता (General Intelligence ‘g’) द्वितीय विशिष्ट मानसिक योग्यता (Specific Intelligence ‘s’).

v  प्रत्येक व्यक्ति में सामान्य मानसिक योग्यता के अतिरिक्त कुछ-न-कुछ विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती हैं.
v  एक व्यक्ति जितने ही क्षेत्रों अथवा विषयों में कुशल होता है, उसमें उतनी ही विशिष्ट योग्यताएँ पाई जाती हैं.

v  यदि एक व्यक्ति में एक से अधिक विशिष्ट योग्यताएँ है, तो इन विशिष्ट योग्यताओं में कोई विशेष सम्बन्ध नहीं पाया जाता हैं.

v  स्पीयरमैन का यह विचार है कि एक व्यक्ति में सामान्य योग्यता की मात्रा जितनी ही अधिक पाई जाती हैं, वह उतना ही अधिक बुद्धिमान होता हैं.

बहुकारक सिद्धांत –

इस सिद्धांत के मुख्य समर्थक थॉर्नडाइक थे. इस सिद्धांत के अनुसार, बुद्धि कई तत्वों का समूह होती हैं और प्रत्येक तत्व में कोई सूक्ष्म योग्यता निहित होती हैं. अत: सामान्य बुद्धि नाम की कोई चीज नही होती बल्कि बुद्धि में कई स्वंत्रत, विशिष्ट योग्यताएँ निहित रहती हैं, जो विभिन्न कार्यों को सम्पादित करती हैं.

थॉर्नडाइक ने तीन प्रकार की बुद्धि के बारे में बताया. ये बुद्धि है – अमूर्त बुद्धि, समाजिक बुद्धि तथा यांत्रिक बुद्धि

इसके अतिरिक्त थॉर्नडाइक ने बुद्धि के चार स्वंत्रत प्रतिमान दिए हैं –
1.      स्तर (Level) – स्तर का शाब्दिक अर्थ होता हैं कि किसी विशेष कठिनाई स्तर का कितना कार्य किसी व्यक्ति द्वारा किया जा सकता हैं.

2.      परास/सीमा (Range) – इसका अर्थ है, कार्य की उस विवधता से जो किसी स्तर पर कोई व्यक्ति समस्या का समाधान कर सकता हैं.

3.      क्षेत्र (Area) – क्षेत्र का अभिप्राय है, क्रियाओं की उन कुल संख्याओं से हैं, जिनका हम समाधान कर सकते हैं.

4.      गति (Speed) – इसका अर्थ कार्य करने की गति से हैं.

प्रतिदर्श सिद्धांत –

·         इस सिद्धांत का प्रतिपादन थॉमसन ने किया था. उसने अपने इस सिद्धांत का प्रतिपादन स्पीयरमैन के द्वि-कारक सिद्धांत के विरोध में किया था.

·         प्रतिदर्श सिद्धांत के अनुसार बुद्धि कई स्वंत्रत तत्वों से बनी होती हैं. कोई विशिष्ट परिक्षण या विधालय सम्बन्धी क्रिया में इनमें से कुछ विशेष तत्व स्पष्ट रूप से दिखाई देने लगते है. यह भी हो सकता है की दो या अधिक परीक्षाओं में एक ही प्रकार के तत्व दिखाई दें तब उनमें एक सामान्य तत्व की विधमानता मानी जाती हैं. यह भी सम्भव है की अन्य परीक्षाओं में विभिन्न तत्व दिखाई दें तब उनमे कोई भी तत्व सामान्य नही होगा और प्रत्येक तत्व अपने आप में विशिष्ट होगा.

गिलफोर्ड का सिद्धांत –

जे.पी.गिलफोर्ड और उसके सहयोगियों ने बुद्धि परीक्षण से सम्बन्धित कई परीक्षणों पर कारक विश्लेषण तकनीक का प्रयोग करते हुए मानव बुद्धि के विभिन्न तत्वों या कारकों को प्रकाश में लाने वाला प्रतिमान विकसित किया. इस सिद्धांत को पदानुक्रमिक सिद्धांत (त्रि-आयामी) भी कहा जाता हैं.
Ø  संज्ञान (Cognition) का अर्थ होता हैं, खोज या पहचान की क्षमता इत्यादि.

Ø  स्मृति (Memory) इसका अर्थ होता है, जो व् संज्ञान में आया उसे धारण करना या याद करना.

Ø  मूल्यांकन (Evalution) इस प्रक्रिया के अंतर्गत व्यक्ति जो कुछ जानता है वह उसकी स्मृति में रहता हैं तथा जो कुछ वह मौलिक चिंतन में निर्मित करता है, उनके परिणामों की अच्छाई, सत्यता, उपयुक्तता के विषय में निर्णय लेता हैं.

Ø  अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) के अंतर्गत व्यक्ति समस्या के ऐसे समाधान पर पहुँचता है, जो परम्परा एवं प्रचलन के अनुसार स्वीकृत एवं सही समझा जाता हैं.

Ø  अपसारी चिंतन (Divergent Thinking) के अंतर्गत व्यक्ति विभिन्न दशाओं, विभिन्न मार्गों से विभिन्नता के साथ समस्या का हल निकालता है तथा व्यक्ति उनके परिणाम की अच्छाई तथा उपयोगिता के सन्दर्भ में निर्णय लेता हैं. आउट ऑफ़ द बॉक्स चिन्तन इसी के अंतर्गत आता हैं.

हावर्ड गार्डनर का बहु-बुद्धि सिद्धांत –

हावर्ड गार्डनर महोदय ने 1983 ई. में बुद्धि का एक नवीन सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसे गार्डनर का बहु-बुद्धि सिद्धांत के नाम से जाना जाता हैं. इस सिद्धांत के अंतर्गत तीन कारकों पर बल दिया गया है, जो निम्न प्रकार है –

                    i.            बुद्धि का स्वरूप एकाकी न होकर बहुकारकीय होता है तथा प्रत्येक बुद्धि एक-दुसरे से अलग होती हैं.
                   ii.            प्रत्येक ज्ञान/बुद्धि एक-दुसरे से स्वंत्रत होती हैं. बुद्धि के विभिन्न प्रकारों में एक-दुसरे के साथ अत:क्रिया करने की प्रवृति पाई जाती है.
                 iii.            प्रत्येक व्यक्ति में विलक्षण योग्यता होती हैं.

गार्डनर ने आठ प्रकार से बुद्धि का वर्णन किया है, जो निम्न प्रकार है –

1.      भाषाई बुद्धि (Linguistic-Intelligence) इस प्रकार की बुद्धि से भाषा सम्बन्धी क्षमता का विकास होता हैं.

2.      तार्किक गणितीय क्षमता (Logical Mathematical Intelligence) बुद्धि का यह अंग तार्किक योग्यता एवं गणितीय कार्यों से सम्बन्ध है.

3.      स्थानिक बुद्धि (Spatial Intelligence) इस तरह का बुद्धि का उपयोग अन्तरिक्ष यात्रा के दौरान, मानसिक कल्पनाओं को चित्र का स्वरुप देने में किया जाता हैं.

4.      शारीरिक गतिक बुद्धि (Body Kinesthetic Intelligence) इस प्रकार की बुद्धि का प्रयोग सूक्ष्म एवं परिष्कृत समन्वय के साथ शारीरिक गति से सम्बन्धित कार्यों में होता हैं – नृत्य, सर्कस, व्यायाम

5.      सांगीतिक बुद्धि (Musical Intelligence) इस प्रकार का ज्ञान का उपयोग संगीत के क्षेत्र में होता हैं.

6.      अन्त:पारस्परिक बुद्धि (Inter-related Intelligence) इस प्रकार के ज्ञान का उपयोग सामाजिक व्यवहारों में प्राय: होता हैं.

7.      अन्त:वैयक्तिक बुद्धि (Interpersonal Intelligence) इस प्रकार की बुद्धि का प्रयोग आत्मबोध, पहचान तथा स्वयं की भावनाओं एवं कौशल क्षमता को जानना हैं.

8.      नैसर्गिक बुद्धि या प्राकृतिक (Natural Intelligence) इस प्रकार के ज्ञान का सम्बन्ध वनस्पति जगत पेड़-पौधे, जीव-जन्तु या प्राणी समूह या प्राकृतिक सौन्दर्य को परखने इत्यादि में होता हैं.
                    इस तरह सभी मनोवैज्ञानिकों ने अपने-अपने तरीके से बुद्धि के सिद्धांत का प्रतिपादन किया.



मैं उम्मीद करती हूँ की आप सभी को मेरी ये प्रयास ज्ञान अर्जन करने में सहायता प्रदान करेगी. अपना कीमती समय देने के लिए आप सभी को दिल से धन्यवाद !





  



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