आनुवंशिकता एवं वातावरण का प्रभाव (INFLUENCE OF HEREDITY AND ENVIRONMENT)


आनुवंशिकता एवं वातावरण का प्रभाव (INFLUENCE OF HEREDITY AND ENVIRONMENT) –



आनुवंशिकता का अर्थ (Meaning Of Heredity) –
                 आनुवंशिक या वंशानुगत गुणों का एक पीढ़ी से दुसरे पीढ़ी में स्थानान्तरण को आनुवंशिकता या वंशानुक्रम (Heredity) कहा जाता हैं. आनुवंशिकता के माध्यम से शारीरिक, मानसिक, सामजिक गुणों का स्थानान्तरण बालकों में होता हैं.

जेम्स ड्रेवर के अनुसार – “शारीरिक, मानसिक विशेषताओं का माता-पिता से संतानों में हस्तांतरण होना आनुवंशिकता कहलाता हैं”.

एच ए पेटरसन एवं वुडवर्थ – “व्यक्ति अपने माता-पिता के माध्यम से पूर्वजों की, जो विशेषताओं को प्राप्त करता हैं, उसे वंशानुक्रम कहते हैं”.

आनुवंशिकता का प्रभाव (Effect Of Heredity) –
आनुवंशिकता का प्रभाव विभिन्न लक्षणों जैसे- शारीरिक बुद्धि तथा चरित्र पर अलग-अलग पड़ता हैं.

शारीरिक लक्षणों पर प्रभाव –
·         बालक के रंग-रूप, आकार, शारीरिक गठन, ऊँचाई इत्यादि के निर्धारण में उसके आनुवंशिक गुणों का महत्वपूर्ण योगदान होता हैं.

·         शारीरिक लक्षणों के वाहक जीन प्रखर अथवा प्रतिगामी दोनों प्रकार के हो सकते हैं. यह एक ज्ञात सत्य हैं की किन्हीं विशेष रंगों के लिए पुरुष और महिला में रंगों को पहचानने की अन्धता (Colour Blindness) अथवा किन्हीं विशिष्ट रंगों के संवेदना नारी में नर से अधिक हो सकती हैं.  एक दादी और माँ, स्वयं रंग-अन्धता से ग्रस्त हुए बिना किसी नर शिशु को यह स्थिति हस्तांतरित कर सकती हैं. ऐसा स्थिति इसलिए हैं, क्योकि यह विकृति प्रखर होती हैं, परन्तु महिलाओं में यही प्रतिगामी (Recessive) होती हैं.

·         जीन्स जोड़ों (Pairs) में होते हैं. यदि किसी जोड़ें में दोनों जीन प्रखर होंगें तो, उस व्यक्ति में वह विशिष्ट लक्षण दिखाई देगा, यदि एक जीन प्रखर हो और दूसरा प्रतिगामी, तो जो प्रखर होगा वही अस्तित्व में रहेगा.

·         प्रतिगामी जीन आगे सम्प्रेषित हो जाएगा और यह अगली किसी पीढ़ी में अपने लक्षण प्रदर्शित कर सकता हैं. अत: किसी व्यक्ति में किसी विशिष्ट लक्षण की दिखाई देने के लिए प्रखर जीन ही जिम्मेदार होता हैं.


बुद्धि पर प्रभाव –

·         बुद्धि को अधिगम की योग्यता, समायोजन योग्यता, निर्णय लेने की क्षमता इत्यादि के रूप में परिभाषित किया जाता हैं. जिस बालक के सीखने की गति अधिक होती हैं, उसका मानसिक विकास तीव्र गति से होता होगा. बालक अपने परिवार, समाज एवं विधालय में अपने आपको किस तरह समायोजित करता है यह उसके बुद्धि पर निर्भर करता हैं.

·         गोडार्ड का मत है की “मन्दबुद्धि माता-पिता की सन्तान मन्दबुद्धि और तीव्रबुद्धि माता-पिता की सन्तान तीव्रबुद्धि वाली होती हैं”. मानसिक क्षमता के विकास अनुकूल ही बालक में संवेगात्मक क्षमता का विकास होता हैं.

·         संवेगात्मक रूप से असंतुलित बालक पढ़ाई में या किसी अन्य गम्भीर कार्यों में ध्यान नहीं दे पाते, फलस्वरूप उनका मानसिक विकास भी प्रभावित होता हैं.

चरित्र पर प्रभाव –
·         डगडेल नामक मनोविज्ञानिक ने अपने अनुसन्धान के आधार पर यह बताया की माता-पिता के चरित्र का प्रभाव भी उसके बच्चे पर पड़ता हैं.

·         व्यक्ति के चरित्र पर उसके वंशानुगत कारकों का प्रभाव भी स्पष्ट तौर पर देखा जाता हैं, इसलिए बच्चे पर उसका प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही हैं. डगडेल ने 1877 ई. में ज्यूक नामक व्यक्ति के वंशजों का अध्ययन करके यह बात सिद्ध की.

वातावरण का अर्थ एवं परिभाषा (Meaning And Defination Of Environment) –

वातावरण का अर्थ पर्यावरण हैं. पर्यावरण दो शब्दों – परि एवं आवरण के मिलने से बना हैं. परि का अर्थ होती हैं चारों ओर, आवरण का अर्थ होता हैं ढकना या घेरना. इस प्रकार पर्यावरण का अर्थ होता हैं चारों ओर से घेरने वाला. प्राणी या मनुष्य, जल, पानी, हवा, पेड़-पौधे, जीव-जंतुओं आदि सब मिलकर पर्यावरण का निर्माण करते हैं.
                                          मानव विकास में जितना योगदान आनुवंशिकता का है उतना ही वातावरण का भी, इसलिए कुछ मनोवैज्ञानिक वातावरण को सामाजिक वंशानुक्रम भी कहते हैं. व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक ने वंशानुक्रम से अधिक वातावरण को महत्व दिया हैं.

एनास्टैसी के अनुसार – “पर्यावरण वह हर चीज है, जो व्यक्ति के जीवन के अलावा उसे प्रभावित करती हैं”.

जिसबर्ट के अनुसार – “जो किसी एक वस्तु को चारों ओर से घेरे हुए है तथा उस पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालता हैं वह पर्यावरण होता हैं”.

हालैण्ड एवं डगलस के अनुसार – “जीव-जगत के प्राणियों के विकास, परिपक्वता, प्रकृति, व्यवहार तथा जीवन शैली को प्रभावित करने वाले बाह्य समस्त शक्तियों, परिस्थितियों तथा घटना को पर्यावरण में सम्मिलित किया जाता हैं और उन्हीं की सहायता में पर्यावरण का वर्णन किया जाता हैं”.

वातावरण का प्रभाव (Effect Of Environment) –
                                वातावरण के प्रभाव निम्न हैं –

शारीरिक अंतर का प्रभाव – व्यक्ति के शारीरिक लक्षण वैसे तो वंशानुगत होते है, किन्तु इस पर वातावरण का प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता हैं. पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का कद छोटा होता हैं, जबकि मैदानी क्षेत्रों में रहने वाले लोगों का शरीर लम्बा एवं गठीला होता हैं.

प्रजाति की श्रेष्ठता पर प्रभाव – कुछ प्रजातियों की बौद्धिक श्रेष्ठता का कारण वंशानुगत न होकर वातावरणीय होता हैं. ये लोग इसलिए अधिक विकास कर पाते हैं, क्योंकि उनके पास श्रेष्ठ शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण उपलब्ध होता हैं.

उदाहरणस्वरुप – यदि एक महान व्यक्ति के पुत्र को ऐसी जगह पर छोड़ दिया जाए, जहाँ शैक्षिक, सांस्कृतिक एवं सामाजिक वातावरण उपलब्ध न हो, उसका अपने पिता की तरह महान बनना सम्भव नहीं हो सकता.

व्यक्तित्व पर प्रभाव – व्यक्तित्व के निर्माण में वंशानुक्रम की अपेक्षा वातावरण पर अधिक प्रभाव पड़ता हैं. कोई भी व्यक्ति उपयुक्त वातावरण में रहकर अपने व्यक्तित्व का निर्माण करके महान बन सकता हैं. न्यूमैन, फ्रीमैन और होलजिगर ने इस बात को साबित करने के लिए 20 जोड़े जुड़वाँ बच्चे को अलग-अलग वातावरण में रखकर उनका अध्ययन किया. उन्होंने एक जोड़े के एक बच्चे को गाँव के एक फार्म पर और दुसरे को नगर में रखा. बड़े होने पर दोनों बच्चों में पर्याप्त अंतर पाया गया. फार्म का बच्चा अशिष्ट, चिंताग्रस्त और बुद्धिमान था. उसके विपरीत, नगर का बच्चा, शिष्ट, चिंतामुक्त और अधिक बुद्धिमान था.

मानसिक विकास पर प्रभाव – गोर्डन नामक मनोवैज्ञानिक का मत है की उचित सामाजिक और सांस्कृतिक वातावरण नहीं मिलने पर मानसिक विकास की गति धीमी हो जाती हैं.

बालक पर बहुमुखी प्रभाव – वातावरण बालक के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, संवेगात्मक आदि सभी अंगों पर प्रभाव डालता हैं.
इसकी पुष्टि ‘एवेरान का जंगली बालक’ के उदाहरण से की जा सकती हैं. इस बालक को जन्म के बाद भेड़िया उठा ले गया था और उसका पालन-पोषण जंगली पशुओं के बीच में हुआ था. कुछ शिकारियों ने उसे 1799 ई. में पकड़ लिया. उस समय उसकी आयु 11 अथवा 12 वर्ष की थी. उसकी आकृति पशुओं-सी हो गयी थी. वह उनके समान ही हाथों-पैरों से चलता था. वह कच्चा मांस खाता था. उसमें मनुष्य की समान बोलने और विचार करने की शक्ति नही थी.

आनुवंशिकता एवं वातावरण का शैक्षिक महत्व -

v  बालक के सम्पूर्ण व्यवहार की सृष्टी, वंशानुक्रम एवं वातावरण की अन्त:क्रिया द्वारा होती है.
v  बालक के शारीरिक ,मानसिक ,सवेंगात्मक ,सामाजिक एवं सभी प्रकार के विकासों पर वातावरण एवं आनुवंशिकता का प्रभाव पड़ता है.अतः इस प्रकार की जानकारियां शिक्षक को बच्चो के समस्या समाधान में सहायता प्रदान करती है .
v  बालक की रुचियाँ ,अभिरुचि एवं अभिवृति आदि के विकास के लिए वातावरण अधिक जिम्मेदार होता है लेकिन इसके साथ अगर वंशानुक्रम भी ठीक हो तो विकास को सार्थक दिशा मिलती है.
v  शिक्षा की किसी भी योजना में वंशानुक्रम एवं वातावरण को एक -दुसरे के अलग नही किया जा सकता है .
v  वंशानुक्रम से व्यक्ति को शरीर का आकार-प्रकार प्राप्त होता है तथा वातावरण शरीर को पुष्ट करता है.


मैं आशा करती हूँ की आपको मेरी ये प्रयास पसंद आयेगी और साथ-ही-साथ CTET की तैयारी में आपकी मदद करेगी. अपना किमती समय देने के लिए आपसभी को दिल से धन्यवाद ! 





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